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जाति व्यवस्था एवं कुमावत

भारत में आर्य सभ्यता का विकास प्रारंभ हुआ,तब यह क्षेत्र आर्याव्रत कहलाया अफगानिस्तान से लेकर ब्रह्मा तक के इस क्षेत्र में राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में पितृसत्तामक परिवार के आधार पर बनने लगी। इस युग में जीवन सुखी व खुशहाल बनाने के लिए समाज मे वर्ण व्यवस्था का सूत्रपात हुआ।, उत्तर वैदिक काल में राजतंत्र और राजाऔ के वर्चस्व में अत्यधिक वृद्धि और राजाओं का चयन वंशागुतक आधार पर होने लगे,और इसी दोर मे वंशवाद का सूत्रपात हुआ। सामाजिक व्यवस्था के सूत्रपात के लिए व्यवहार शास्त्र का प्रारंभ हुआ,और इसी कारण आर्य सभ्यता का वैदिक काल भारतीय सभ्यता का विकास काल करवाया गया।         प्राचीन भारत में जातिय व्यवस्था नही थी,बल्कि वर्ण व्यवस्था प्रचिलित थी,समाज चार भागो मे विभाजित था। वर्णो का निर्धारण कर्म के आधार पर आधारित था। जो जेसा कर्म करता था व उसा वर्ण में माना जाता था। वर्तमान जाति व्यवस्था प्राचीन वर्ण व्यवस्था का ही परिवर्तित स्वरूप है।प्रारंभिक सामाजिक व्यवस्था को कालांतर में धार्मिक संबल भी प्राप्त हो गया और जाति व्यवस्था सुदृढ़ होती गई,कालांतर में जाति व्यवस्था को सम...

कुमावत जाति एवं प्राचीन पहचान

कुमावत समाज के अस्तित्व को लेकर कई तरह की मिथ्या धारणाऐ प्रचलित हैं।राजनेतिक वर्चस्व की लड़ाई में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कुछ लोग दुसरी जाति का हिस्सा बता कर इसके अस्तित्व को ही समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं,जो इस जाति जाति के साथ कुछ लोगों का खिलवाड़ मात्र है। राजस्थान ही नही अन्य राज्यों में यह समाज जहाँ भी निवास करती है,समूह के रूप में निवास करती है। दुसरी जाति की तरह नही जिसके हर गाँव में एक दो घर मिल जायेगे। क्योंकि कर्म के आधार पर वह जाति प्रत्येक गाँव में पाई जाती है। किन्तु कुमावत जाति अपने सृजन कार्यो के लिए समूह के रूप में निवास करते रहे हैं। उसका कारण भी रहा है,देश काल में राजा,रजवाडो,सेठ साहूकारो के गढ महल,किले,हवेलियो,का निर्माण हो या जलाशयो का उनके सृजन के लिए कई कारीगरो की आवश्यकता होती थी,इस लिए कुमावत समूह के रूप में जाकर उस कार्य को पूर्ण करते थे,जो वर्षों चलता था, इस कारण कुछ वही रूक जाते थे,तथा शेष नवसृजन के लिए अन्य स्थानों पर रवाना हो जाते थे। इसी कारण कुमावत समाज वही है जहाँ गढ महल किले हवेलि या है, या खेती से सम्पन्न धरा है,जहा भी है अच्छी संख्या में...

कुमावत - संदर्भ

कुमावत जाति के वंशजों और उनके द्वारा निर्मित ऐतिहासिक धरोहरो के बारे मै प्रमाणिक और प्रभूत साक्ष्यों की बहुत बड़ी कमी रहने के बावजूद भारत के विभिन्न प्रांतो के नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र मै रहे बसे कुमावत समाज के कतिपय महानुभावो, और विशेषकर जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बाडमेर, जालोर, सिरोही, पाली, राजसमंद, उदयपुर, चितौडगढ, भीलवाड़ा, टोक, अजमेर, आबू, सीकर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पुष्कर, दिल्ली, भोपाल, अहमदाबाद, श्री गंगानगर, सुरत, पुणे, भिवानी, बडौदा,औरंगाबाद, रतलाम, उज्जैन, इन्दौर, के लोगो से,अपने शोध मै व्यक्तिगत, या मेल, के दवारा  सरकारी प्रशनावली संदर्भ ग्रंथो, सरकारी दस्तावेज  राजवंशो के पोथी खाने  आदि राव भाटो की पोथियो आदि दस्तावेजों  के माध्यम से जो जान पाया, और समझ सका वह निरपेक्ष रूप से आपके कर किलो मै अर्पित है।निःसंदेह मै इस तथ्य को स्वीकार करता हू।कि लेखन एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है।वह कोई अंतिम निर्णय नही है।जेसे जेसे शोध की परते खुलती जाती है।इसमे आवश्यक संशोधन जरूरी होते जाते है।कोई भी इतिहास वेता और इतिहास लेखक इस बात का दावा नही कर सकता,कि जो कुछ उसने ...