रविवार, 21 मई 2023

कुमावत महापंचायत समाज की जरूरत - लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला

जयपुर में कुमावत समाज की महापंचायत में सम्मिलित होने का सुअवसर मिला। भारत तथा राजस्थान की वैभवशाली कला व संस्कृति को सहेजने तथा और समृद्ध बनाने में समाजबंधुओं का अतुलनीय योगदान है। उनकी सृजनात्मकता का ही परिणाम है कि देश-विदेश से पर्यटक यहां का शिल्प और मूर्ति कला देखने आते हैं।
बदलते समय के साथ समाज अब अपनी गौरवशाली विरासत को संरक्षित करते हुए आधुनिक तकनीक का भी समावेश करे। सामाजिक-राजनैतिक रूप से आगे बढ़ने के लिए कुमावत समाज ग्रामीण क्षेत्रों तक भावी पीढ़ी विशेषतः बेटियों में शिक्षा और संस्कारों को बढ़ावा दे।
इस तरह के आयोजनों में बुनियादी विषयों पर चर्चा के साथ समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए सामुहिकता से कार्ययोजना बनाई जाए। सार्थक और सकारात्मक सामूहिक निर्णयों से समाज आगे बढ़ेंगे तो निश्चित तौर पर देश भी नई ऊंचाइयों को छुएगा।

कुमावत कौन है?

एक नजर समाज के गौरवमय इतिहास गाथा की एक झलक बड़े भाई पत्रकार आदरणीय #श्री_जितेंद्र_सिंह_शेखावत_जी की कलम से.....

          कुमावत शिल्पियों को प्रदत्त शिल्पकला ईश्वर का अनूठा वरदान है । सालों पहले बनाए गए गढ़,किले,मंदिर और महलों में बाल जितना भी इन्होनें दोष नहीं छोड़ा । ख़ून पसीना सींच मेहनत और ईमानदारी से काम करने में माहिर कुमावतों का कला और शिल्प आज भी मुंह बोलता है । जयपुर, आगरा, ग्वालियर,पुणे और देश में बनी इमारतों में कुमावत शिल्पियों की आत्मा बसती है। यही कारण है कि इनकी बनाई कृतियों को निहारने के लिए आज संपूर्ण संसार का पर्यटक भारत आता है । इनकी उत्कृष्ट कलाकृतियों को देख लोग, दांतों तले अंगुली दबाते हैं  और कहते हैं वाह-वाह, इन कृतियों को रचनाकार को...

ताजमहल,संसद भवन, राष्ट्रपति भवन के अलावा मारवाड़, ढूंढ़ाड़,मेवाड़,वागड़ और शेखावटी ही नहीं, पूरे देश में, कुमावतों की कारीगरी का डंका बजता है । 

मेवाड़ में मंडन, नामा, पूंजा की देख-रेख में बने अद्वितीय किलों और मंदिरों की कलाकृतियां, कुमावतों शिल्पियों के हथौड़े,करणी, छैनी और उनकी मेहनत की स्वर लहरियां आज भी धमकती है । शेखावटी की हवेलियां और महलों के चित्रांकन में कुमावतों की कलम का दिग्दर्शन होता है । इस कलम की स्वर लहरियां आज भी, विश्व पटल पर गूंजती हैं । 

चित्तौड़ का विजय स्तम्भ, जयपुर का हवामहल, सिटी पैलेस,आमेर का विश्व प्रसिद्ध किला आदि अनगिनत इमारतों को तराशने वाले कुमावत समाज पर पूरे देश को नाज़ है । राजस्थान के मारवाड़, मेवाड़, वागड़,हाड़ौती,शेखावटी, ढूंढ़ाड़ के अलावा यह कुमावत गांव, ढ़ाणियों और शहरों में बसे हैं । ईमानदारी,कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई तो इन शिल्पियों के जीवन का दर्शन है । इनकी कला से सृजित यह हमारा राजस्थान है । जिसके कण-कण में इनकी अनूठी कारीगरी का अलाप गूंजता है ।  

सलाम है,  इनके योग्य पूर्वजों को जिन्होनें, इस धरती माता का अनूठा श्रृंगार किया । धन्य है, इनकी माताओं को, जिन्होनें इन्हें नेकी का पाठ पढ़ाया । यही कारण है कि आज के लोगों को कुमावत कारीगरों पर ही पूरा भरोसा है । 

जयपुर को बसाने वाले अनंतराम लाला कैकटिया ने ही तो इस गुलाबी नगीर का मानचित्र बनाया था । अष्ठ सिद्धि-नव निधि के आधार पर बसाए इस जयपुर के निर्माण में,  बाल जितना भी दोष नहीं छोड़ा । राजस्थान को ख़ूबसूरत बनाने वाले शिल्पियों को वास्तुशास्त्र और भवन निर्माण का ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है । मनीराम सिरोदिया तो वास्तु के साथ खगोल शास्त्र के भी पारखी थे । उनकी देख-रेख में जंतर-मंतर का निर्माण हुआ । 

देश की राजधानी दिल्ली में तो कुमावतों का जलवा रहा है । 
रायसीना हिल्स ,जयपुर हाउस की नेशनल आर्ट गैलेरी आदि न जाने क्या-क्या बना दिया इनके पूर्वजों ने ....इनकी साधना भी उच्च श्रेणी की है । चाहे कुछ भी हो जाए काम में दोष और ओलमा नहीं रहता । आदिकालीन,पौराणिक कुमावत जाति के शिल्पी, सलावत, वास्तुविद,चित्रकार,गजधर,संतरास, राज मिस्त्री,राज कुमावत, उस्ता आदि उपाधियों से सुशोभित हैं । 

महाराणा कुंभा हों या जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ..इनके आदेश पर इन शिल्पियों ने इमारतों को अपनी हथौड़ी से ऐसा तराशा है कि गढ़ और किलों के बाहर चाहे राजा, महाराजा का नाम हो, भीतर तो कुमावत शिल्पियों का ख़ून-पसीना बह रहा है । 

कुमावत का अर्थ कुछ ऐसे है ...कु का मतलब धरती और मां का अर्थ है धरती माता ...और शेष नाम में धरती का अनूठा श्रृंगार करने वाले कुमावत हैं । इन्होनें अनमोल धरोहरों को खड़ा किया ।  भूकंप और आपदा में आज के बने मकान ताश के पत्तों की तरह ढ़ह जाते हैं । सदियों से कितनी भी आपदाएं आई हों, इनके बनाए गढ़, किलों में एक इंच की भी दरार नहीं आई । 

स्वाभिमान और कड़ी मेहनत के बल पर इन्होनें समाज में इज्जत का बड़ा मुकाम हासिल किया है । आज भी भवन बनता है तो कारीगर और उसके औजार का पूजन किया जाता है । चंदन की कारीगरी हो या विश्व प्रसिद्ध शीशमहल के कांच की जड़ाई...।  चित्रकारी तो हजारों साल बाद भी फीकी नहीं पड़ी है । 
मारवाल,कारगवाल,राहोरिया,छापोल्या,सिरोहिया,बबेरवाल, बड़ीवाल,खोवाल,घोडेला,अजमेरा,जालवाल,मारोड़िया ...
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(नोट - खाली स्थान रखा है, अन्य गोत्रों के नाम लिखने के लिए .....) 

सात सौ से ज्यादा इनके गौत्र हैं, चूने के बने गढ़ मजबूत हैं । घरट से घिसाई और मैथी गुड़ से बनी छतों से वर्षों बाद पानी टपकना तो दूर, सीलन तक नहीं आई । कुमामण का किला देख लो...रामचन्दर मेघराम ने इसे बनाया था । नारायण घोड़ेला के नाम पर कल्याण जी का रास्ता की एक गली है । उदयराम घोड़ेला को जोधपुर के महाराजा ने सोने का कड़ा देकर सम्मानित किया था । साँभर के कन्हैयालाल चित्रकार और मारोठ का कला घराना तो देश में प्रसिद्ध है । 

जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय ने रामबक्स उस्ता से रामबाग का मानचित्र बनवाया था । राम प्रकाश गहलोत , जयपुर के प्रमुख वास्तुविद रहे । लालचंद ने मेयो अस्पताल की डिजाइन बनाई । अल्बर्ट हॉल के निर्माण में नारायण मिस्त्री घोड़ेला का योगदान रहा । राम प्रकाश उस्ता, महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्राचार्य रहे । गंगापोल में लवाण का घेर के राम सहाय ने सिटी पैलेस,नाहरगढ़, आमेर महल की चित्रकारी को नवीन रूप दिया । सवाई रामसिंह ने मास्टर राम प्रसाद उस्ता को सोने के कड़े का सम्मान दिया था । सन 1957 में, राम प्रकाश गहलोत को पद्म श्री मिली । सांभर के कन्हैयालाल वर्मा, डॉ.नाथूलाल, लालचंद मारोठिया का नाम ऊंचा रहा । सौभागमल गहलोत, शांति निकेतन में कला सिखाने गए थे । उन्होनें 1933 में, रामबाग विस्तार के अलावा सिटी पैलेस आदि के मानचित्र बनाए । 

विश्व प्रसिद्ध ईसरलाट का निर्माण सन 1749 में गणेश राम खेडवाल के निर्देशन में हुआ । चित्तौड़गढ़ के किलों और विजय स्तम्भ का निर्माण कुमावत शिल्पियों ने किया था । वास्तुविद मंडन के दूसरे पुत्र ईश्वर का ग्रंथों में उल्लेख मिलता है । विक्रम संवत 1554 की प्रशस्ति में, इसका उल्लेख है । 

उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित एक 'खत्तरगच्छ' के लेख में, ईश्वर के पुत्र छीतर का उल्लेख है । यहीं खेता खनारिया के दो पुत्र मंडन और नाथा मंडन हैं । लाखा के पुत्र जैता, मंडावरा व उसके भाई नारद का उल्लेख, विक्रम संवत में चित्तौड़ के महावीर प्रसाद की प्रशस्ति में हुआ है । इस खानदान के कुमावतों ने अनेक किले और मंदिरों का निर्माण करवाया था । 

विक्रम संवत 1515 के एक लेख में , लाखा मंडावरा को सकल वास्तु शास्त्र विशारद बताया है । जैता के पुत्रों में नापा, यामा, पूंजा, भूमि,चुथि व बलराज थे । संवत 1538 में, प्रकाशित मूर्ति लेख में शिल्पकार सिहा ने शांतिनाथ जी की मूर्ति बनाई थी । विक्रम संवत 1587 के लेख में मंदिर के जीर्णोद्धार का वर्णन है । नीलकंठ मंदिर के स्तंभ पर विक्रम संवत 1787 के लेख में, बापा के पुत्र वीरभाना मंडावरा का ज़िक्र है । संवत 1832,1833 व 1839 के लेखों में गजधर शिल्पकारों के नाम के आगे सलावट लिखा है । चित्तौड़गढ़ किले को बनाने में कुमावत जाति के वास्तुशास्त्रियों का बड़ा योगदान मिलता है । 

जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेघ यज्ञ कराया था । तब मानसागर झील के बीच में, उस्ता रामनारायण खोवाल व हीरालाल नागा की देख-रेख में महल बना । यहां महराब और छतरियों का शिल्प अति उत्कृष्ट है । इस झील में बने महल को आमागढ़ और घाट के पत्थरों की नींव पर खड़ा किया । पानी में बने महल पर चूने के मिश्रण से ऐसा प्लास्टर किया गया जिसकी वजह से महल अब तक सुरक्षित है । 

उदयपुर के एकलिंग जी परिसर में, एक सौ आठ मंदिरों का निर्माण, महाराणा मोकल के समय में राज शिल्पी खेता खनारिया की देखरेख में हुआ । महात्म के श्लोक में लिखा है कि यहां पर शिल्पियों ने अद्भुत तोरण द्वार बनवाया । इसके निर्माण में पामा और नापा खनारिया के नाम का उल्लेख मिलता है । महाराणा मोकल ने राज शिल्पी खेता खनारिया को 'सकल कलाधर' की उपाधि प्रदान की थी । 

रणकपुर जैन मंदिर को सेठ धन्नाशाह ने बनवाया । इनकी डिजाइन को दीपा 'देपाक' ने बनाई थी । सन 1335 में निर्माण शुरु हुआ और पूरा होने में 65 साल लगे थे । शिल्पी दीपा के अलावा जेता मंडन, करनाल, रतना, धन्ना व इनके वंशज जैसा व जावै का योगदान रहा । फालना के पास दीपा गांव में यह शिल्पी मेहरावड़ा गौत्र के कुमावत शिल्पी थे । रतना सारड़ीवाल व जैता मंडन खनारिया गौत्र के थे । चित्तौड़ में किशनलाल जी व चतुर्भुज खनारिया शिल्पी मंडन खानदान के उच्च कोटि के वास्तु शिल्पी थे । 

ढूंढ़ा़ के गुमनाम वास्तु शिल्पियों ने आमेर नरेश जयसिंह शिल्पियों ने आमेर नरेश जयसिंह प्रथम के आदेश पर ताजमहल का निर्माण किया । शाहजहां ने 6 जून 1631 को आदेश दिया था कि ताजमहल निर्माण, आमेर के राजाओं की आगरा स्थित हवेलियों की जगह पर होगा । बादशाह शाहजहां आमेर महल के निर्माण से प्रभावित थे । ऐसे में उन्होनें ताजमहल बनाने के लिए ढूंढ़ाड़ के कारीगरों को मांगा था । 21 जून 1632 को योग्य वास्तुकारों को मकराना में मौजूद मुगल अधिकारी के पास भेजने को लिखा था । ढूंढ़ा़ड़ से करीब बीस हजार शिल्प पारखी भेजे गए जिन्होनें 20 वर्ष में विश्व के आश्चर्य ताजमहल का निर्माण पूरा किया । ताजमहल निर्माण में कुमावत शिल्पियों का योगदान रहा । 

वास्तु के महापंडित मंडन खनारिया महाराणा कुंभा के राज शिल्पी थे । इनके वंशज, चित्तौड़ के सलावट मोहल्ले में निवास करते हैं । मंडन ने नौ ग्रंथों की रचना की । जिनमें देवता मूर्ति, प्रसाद मंडन वास्तुशास्त्र, रूप मंडन आदि शामिल हैं । नाथा, भी विद्वान था, उसने वास्तु मंजरी ग्रंथ लिखा । गोविंद ने तीन ग्रंथों में यथा कलानिधि, उद्दार धारिणी, दीपिका जैसी महत्वपूर्ण सामग्री लिखी । ईश्वर का आमेर दुर्ग के निर्माण में योगदान रहा । 

उस्ता लाल कैकटिया ने जयपुर का मानचित्र कपड़े पर बनाया जो सिटी पैलेस संग्रहालय में रखा गया है । कैकटिया ने अयोध्या नगरी को आधार मानकर नवग्रहों के हिसाब से जयपुर में नौ चौकड़ियों की स्थापना की । लूणकरण मोरवाल , सोहन जालांधरा, भूरामल खोराणियां, धन्ना मरोठिया, बालजी तागड़ा, कानजी घोडेला, रघुनाथ सिरोहिया, रघुनाथ तागड़ा, जीवन माचीवाल का जयपुर के निर्माण में योगदान रहा । लाल कैकटिया ने सोने का हल चलाकर जयपुर की आधारशिला महाराजा से रखवाई । कैकटिया को हालुका के नाम से जाना जाता है । इनके वंशज, जयपुर व नाथद्वारा में हैं । 

सन 1798 में प्रसिद्ध हवामहल का निर्माण उस्ता लालचंद व रामचन्द्र कुमावत ने कराया । उस्ता राम विलास ने चांदी की टकसाल, रामचन्द्र जी का मंदिर, रामनिवास बाग, मैये अस्पताल आदि का निर्माण अपनी देख-रेख में करवाया । 

नमक की मंडी में एक हवेली और रामचन्द्रपुरा की जागीर उस्ताराम विलास को दी गई । सेठ मांगीलाल माचीवाल ने रेलवे स्टेशन,सचिवालय और रामबाग बनवाया । सरगासूली उस्ता गणेश राम की देख-रेख में बनी । बाला बक्स मुसरब ने अलबर्ट हॉल बनाने में सहायता की । राम प्रकाश गहलोत ने मुंबई में नगर नियोजक की डिग्री हासिल की । 

शिलामाता मंदिर, मोती डूंगरी के तख्तेशाही महल का सौंदर्यकरण इन्होंने करवाया । रामप्रकाश गहलोत, पहले राजस्थानी थे, जिनको 1945 में रॉयल इन्स्टीट्यूट ब्रिटिश की सदस्यता मिली । राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने उनको पदम श्री से सम्मानित किया । 

विश्वकर्मा पुत्र कुमावत शिल्पियों ने आमेर का किला बनाया । 20 वर्ष में यह किला बनकर तैयार हुआ । विश्व के श्रेष्ठ किलों में शुमार आमेर किले के निर्माण में उस्ता गोरा कैकटिया की देखरेख में हुआ । गोरा कैकटिया, अनंतराम के दादाजी थे । 

उस्ता बाबूलाल मारवाल, सूंडा छापोला की देखरेख में दो हजार कारीगरों ने किले का निर्माण किया । आमेर किला बनाने के बाद, बाबू मारवाल कुचामण और सूंडा छापोला ग्वालियर गए जहां मान मंदिर महल बनाया । 

आमेर किले को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पांच सौ वर्ष पहले भी कुमावत जाति की परंपरा, स्थापत्य कला कितनी उच्च कोटि की थी । वीरभान ने राजसमंद के गढ़, किले बनवाए । 

मराठा बाजीराव पेशवा के निर्देश पर भाऊ मंशा राम धुवारिया ने पुणे का किला बनाया । इस किले की नींव 10 जनवरी 1730 को रखी गई थी । कुमावत शिल्पी भाऊ मंशाराम को मराठों ने नाईक की सर्वोच्य उपाधि प्रदान की ।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

कुमावत महापंचायत क्यों??


कुमावत महापंचायत क्यों??

कई सभ्यताएं जब पहाड़ों की कंदरा व गुफाओं में आश्रय ढूंढ रही थी तब हमारा सफर वैदिक काल के चिति या यज्ञवेदीके निर्माण से लेकर शस्त्रद्वारम व सहस्त्रस्थूणम से होते हुए वृहत्संहिता, मानसार, मयमतम, समरांगण-सूत्रधार, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, शिल्परत्नसार, विश्वकर्मीय प्रकाश से होते हुए राजवल्लभ वास्तुशास्त्र एवं वास्तु मण्डनम से मुगलकाल होते हुए उतर मध्यकाल तक कई नामों का ये सफर स्थपति से शुरू होकर सलावट, कारू, कारीगर, गजधर,उस्ता मिस्त्री, राजमिस्त्री, राजगीर, संतरास, नाईक, गवंडी परदेशी बेलदार से होते हुए सबको समाहित करके आधुनिक काल मे एकीकृत "कुमावत" तक पहुंचा है।

जिस तरह रियासत कालीन दौर से सरदार वल्लभभाई पटेल ने एकीकृत भारत का नारा दिया ठीक उसी प्रकार स्थापत्य से सम्बंधित वर्ग एकीकृत होकर "कुमावत" बना है जिसे महाराणा कुंभा द्वारा संबोधित किया गया था।

हालांकि हमारी उदासीनता ने धीरे धीरे सबकुछ हमसे छीन लिया है अब जयपुर को ही देख लीजिए जिसकी बसावट के प्रमुख वास्तुशिल्पी
अनंतराम केकटीया द्वारा बनाये गए कपड़े के नक्शे पर उनके हस्ताक्षर आज भी अंकित है लेकिन हमारी चुप्पी विद्याधर भट्टाचार्य का नाम अंकित करवा देती है।

जयपुर के चीफ आर्किटेक्ट अनंतराम केकटीया की मेहनत को कोई विद्याधर भट्टाचार्य के नाम से बदल देता है, जिस विद्याधर नगर में आप समाज की महापंचायत करने जा रहे हो वह नाम भी आप पर हँस रहा है लेकिन हमें क्या??

चलते हैं तीन साल पहले फ्लेशबैक में, जहां जमाबन्दियों में "कुमावत" शब्द की जगह "कुम्हार/प्रजापति" कर दिया गया लेकिन हम चुप...।

2021 में होने वाली जनगणना जिसकी तारीख लगातार बढ़ रही है हो सकता है आपको जाति वाले कॉलम में आपका कोड ही न मिले??

अतिविकसित समाज ब्राह्मण, विकसित जाट समाज, हमसे हाल ही में आगे निकलने वाले माली समाज व अन्य ओबीसी/अनुसूचित जाति/जनजाति संगठित प्रयास करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ रहें है और जमाने से भी तेज दौड़ रहे है और एक हम है!!

21 मई 2023 ऐसा अवसर है जहां हमें अपने वजूद को साबित करना पड़ेगा, अन्य तो अपने हक़ के लिए आवाज उठा रहे है लेकिन "कुमावत" समाज को अपना वजूद दिखाना पड़ेगा।

अभी नहीं तो कभी नहीं... जय कुमावत समाज