चितौड़गढ़ मे कुमावत जाति के द्वारा स्थापत्य सृजन
चितौड़ मे निर्माण कार्य का दुर्ग में प्रमुख रूप से निम्न प्रकार था। श़ृंगार चंवरी कुम्भ श्याम, कीर्ति स्तम्भ,सतबीस देवरी,और गौमुख,का इलाका,इसमे कुंभा के महल भी सम्मिलित हैं। राजमहल होने से यह सबसे प्रभावशाली स्थान रहा प्रतित होता है। २ दुसरा महत्वपूर्ण इलाका कुकडेश्वर मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर माता का कुण्ड का भाग है। जो 8वी शताब्दी के आसपास उन्नत अवस्था में था 3 सूर्य कुण्ड सूर्य मंदिर आदि का भाग और चोथा भाग जैन कीर्ति स्तम्भ नील कंठ मंदिर तक का भाग हो सकता है! यही मोटे तौर पर चोथे भाग को पहले के साथ देखा जा सकता है! दुर्ग बनने के साथ भवनो व मंदिरो का निर्माण का क्रम जारी रहा प्रतित होता है। क्योंकि 8वी शताब्दी के भवनों के अवशेष आज भी विद्यमान है। इस समय के वास्तु शिल्पीयो के नाम तो इन अवशेषो में पाये नही गये। किन्तु जिस शैली में यह निर्माण सतत् जारी रहा उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है! कि 8वी सदी के निर्माण शिल्पी भी आज के कुमावत ही रहे हैं। भले ही उन्हें सलावट जाति के नाम से जाना जाता रहा हो, दुर्ग पर परमार और सोलंकियो के अधिकार काल में कुछ जैन मंदिर व वैष्णव मंदिर बनना ग्या...