कुमावत महापंचायत क्यों??


कुमावत महापंचायत क्यों??

कई सभ्यताएं जब पहाड़ों की कंदरा व गुफाओं में आश्रय ढूंढ रही थी तब हमारा सफर वैदिक काल के चिति या यज्ञवेदीके निर्माण से लेकर शस्त्रद्वारम व सहस्त्रस्थूणम से होते हुए वृहत्संहिता, मानसार, मयमतम, समरांगण-सूत्रधार, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, शिल्परत्नसार, विश्वकर्मीय प्रकाश से होते हुए राजवल्लभ वास्तुशास्त्र एवं वास्तु मण्डनम से मुगलकाल होते हुए उतर मध्यकाल तक कई नामों का ये सफर स्थपति से शुरू होकर सलावट, कारू, कारीगर, गजधर,उस्ता मिस्त्री, राजमिस्त्री, राजगीर, संतरास, नाईक, गवंडी परदेशी बेलदार से होते हुए सबको समाहित करके आधुनिक काल मे एकीकृत "कुमावत" तक पहुंचा है।

जिस तरह रियासत कालीन दौर से सरदार वल्लभभाई पटेल ने एकीकृत भारत का नारा दिया ठीक उसी प्रकार स्थापत्य से सम्बंधित वर्ग एकीकृत होकर "कुमावत" बना है जिसे महाराणा कुंभा द्वारा संबोधित किया गया था।

हालांकि हमारी उदासीनता ने धीरे धीरे सबकुछ हमसे छीन लिया है अब जयपुर को ही देख लीजिए जिसकी बसावट के प्रमुख वास्तुशिल्पी
अनंतराम केकटीया द्वारा बनाये गए कपड़े के नक्शे पर उनके हस्ताक्षर आज भी अंकित है लेकिन हमारी चुप्पी विद्याधर भट्टाचार्य का नाम अंकित करवा देती है।

जयपुर के चीफ आर्किटेक्ट अनंतराम केकटीया की मेहनत को कोई विद्याधर भट्टाचार्य के नाम से बदल देता है, जिस विद्याधर नगर में आप समाज की महापंचायत करने जा रहे हो वह नाम भी आप पर हँस रहा है लेकिन हमें क्या??

चलते हैं तीन साल पहले फ्लेशबैक में, जहां जमाबन्दियों में "कुमावत" शब्द की जगह "कुम्हार/प्रजापति" कर दिया गया लेकिन हम चुप...।

2021 में होने वाली जनगणना जिसकी तारीख लगातार बढ़ रही है हो सकता है आपको जाति वाले कॉलम में आपका कोड ही न मिले??

अतिविकसित समाज ब्राह्मण, विकसित जाट समाज, हमसे हाल ही में आगे निकलने वाले माली समाज व अन्य ओबीसी/अनुसूचित जाति/जनजाति संगठित प्रयास करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ रहें है और जमाने से भी तेज दौड़ रहे है और एक हम है!!

21 मई 2023 ऐसा अवसर है जहां हमें अपने वजूद को साबित करना पड़ेगा, अन्य तो अपने हक़ के लिए आवाज उठा रहे है लेकिन "कुमावत" समाज को अपना वजूद दिखाना पड़ेगा।

अभी नहीं तो कभी नहीं... जय कुमावत समाज

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