मंगलवार, 28 मार्च 2017

कुमावत - संदर्भ

कुमावत जाति के वंशजों और उनके द्वारा निर्मित ऐतिहासिक धरोहरो के बारे मै प्रमाणिक और प्रभूत साक्ष्यों की बहुत बड़ी कमी रहने के बावजूद भारत के विभिन्न प्रांतो के नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र मै रहे बसे कुमावत समाज के कतिपय महानुभावो, और विशेषकर जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बाडमेर, जालोर, सिरोही, पाली, राजसमंद, उदयपुर, चितौडगढ, भीलवाड़ा, टोक, अजमेर, आबू, सीकर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पुष्कर, दिल्ली, भोपाल, अहमदाबाद, श्री गंगानगर, सुरत, पुणे, भिवानी, बडौदा,औरंगाबाद, रतलाम, उज्जैन, इन्दौर, के लोगो से,अपने शोध मै व्यक्तिगत, या मेल, के दवारा  सरकारी प्रशनावली संदर्भ ग्रंथो, सरकारी दस्तावेज  राजवंशो के पोथी खाने  आदि राव भाटो की पोथियो आदि दस्तावेजों  के माध्यम से जो जान पाया, और समझ सका वह निरपेक्ष रूप से आपके कर किलो मै अर्पित है।निःसंदेह मै इस तथ्य को स्वीकार करता हू।कि लेखन एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है।वह कोई अंतिम निर्णय नही है।जेसे जेसे शोध की परते खुलती जाती है।इसमे आवश्यक संशोधन जरूरी होते जाते है।कोई भी इतिहास वेता और इतिहास लेखक इस बात का दावा नही कर सकता,कि जो कुछ उसने लिखा है। वही अंतिम सत्य है।यही एक मात्र सही विवेचना है। शोध की, शोध के आयाम विविध और व्यापक होते है।और नवीन बातो के प्रकाश मै आने से आवश्यक संशोधन स्वीकार करना लेखक की अवधारणा का मूल है।कुमावत समाज के इतिहास को लेकर अन्य कई लोगो ने इतिहास लिखकर प्रकाश डाला है। और भी लिखा जा सकता है। किंतु मेने इस जाति की परंपरागत पहचान उसकी युगायुगीन शिल्प साधना और स्थापत्य निर्माण शैली पर विशेष धयान दिया है। इस लेखक मै उन तमाम बिंदुऔ  का धयान आकर्षित करने की कोशिश की है। जो इस जाति की संस्कृति, परंपरा, रिति रिवाजों, व वयवसायीयो से जुडी है।  इस लेखन के लिखने मै सहयोग करने वाले व्यक्तियो,संस्थाऔ,एजेंसी,संदर्भ ग्रंथो,शासकीय, व गेर शासकीय,प्रकाशन के प्रति, राजस्थान,पत्रिका, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी,  व्यय गूगल का अपनी कृतज्ञता करता हू।जिसके कारण मै समाज की इतनी जानकारी पा सका,  प्रस्तुत लेखन को पुर्ण करने मै मुझे अनेक विद्वानो,लेखको,कार सहयोग मिला उनका भी दिल से आभारी हू।

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