शनिवार, 25 जून 2016

चितौड़गढ़ मे कुमावत जाति के द्वारा स्थापत्य सृजन

चितौड़ मे निर्माण कार्य का दुर्ग में प्रमुख रूप से निम्न प्रकार था।  श़ृंगार चंवरी कुम्भ श्याम, कीर्ति स्तम्भ,सतबीस देवरी,और गौमुख,का इलाका,इसमे कुंभा के महल भी सम्मिलित हैं। राजमहल होने से यह सबसे प्रभावशाली स्थान रहा प्रतित होता है। २ दुसरा महत्वपूर्ण इलाका कुकडेश्वर मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर माता का कुण्ड का भाग है। जो 8वी शताब्दी के आसपास उन्नत अवस्था में था 3 सूर्य कुण्ड सूर्य मंदिर आदि का भाग और चोथा भाग जैन कीर्ति स्तम्भ नील कंठ मंदिर तक का भाग हो सकता है! यही मोटे तौर पर चोथे भाग को पहले के साथ देखा जा सकता है! दुर्ग बनने के साथ भवनो व मंदिरो का निर्माण का क्रम जारी रहा प्रतित होता है। क्योंकि 8वी  शताब्दी के भवनों के अवशेष आज भी विद्यमान है। इस समय के वास्तु शिल्पीयो के नाम तो इन अवशेषो में पाये नही गये। किन्तु जिस शैली में यह निर्माण सतत् जारी रहा उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है! कि 8वी सदी के निर्माण शिल्पी भी आज के कुमावत ही रहे हैं। भले ही उन्हें सलावट जाति के नाम से जाना जाता रहा हो, दुर्ग पर परमार और सोलंकियो के अधिकार काल में कुछ जैन मंदिर व वैष्णव मंदिर बनना ग्यात हुआ है। जैन अनुशृरुतियो से हरिभ्रद सुरी के समय भी यही जैन मंदिर का होना बताया गया है। यहा समरसिहं के शासनकाल में बहुत विकास हुआ इस काल में भवन निर्माण शिल्पकारो का बडा सम्मान होना उल्लेखनीय है। पर अलाउदीन खिलजी के समय यही के वैभवशाली मंदिरो,भवनो को तहस नहस कर दिया गया, कई शिल्प सृजन की  धरोहरो का नाम ही खत्म कर दिया गया, इसी के साथ उन शिल्पकारो का उल्लेख भी मीटा दिया गया, पर जो अवशेष हैं। वह उनकी अनूठी मिसाल है। चित्तोड मे निर्माण कार्य का दुसरा क्रम समीर से शुरू होता है। जो कुंभा से रायमल के शासनकाल काल तक चलता रहा। इस काल मै महाराणा कुंभा का शासनकाल काल मैवाड के इतिहास में स्वर्ण युग कहा जा सकता है! कुमावत जाति के इतिहास में भी इस काल को स्वर्ण युग माना जा सकता है! इस काल मै कुमावत जाति मै अनेक वास्तु शिल्पीयो का जन्म हुआ। जिन्होंने मैवाड की धरती पर अनेक ऐतिहासिक धरोहरो का निर्माण किया था।  कुंभा के शासनकाल में चित्तोड मे लगभग सभी भग्नमंदिरो को नये  ढंग से बनाया गया। जलाशयो का जीर्णोद्धार किया गया ,दुर्ग की प्राचीरो रक्षापंक्तियों को मजबूत बनया गया  यही नही आने जाने के मार्गों को सुगम व सुरक्षित बनाया गया। यह काम कुमावत कारीगरो ने बड़े ही लग्न और वास्तु शास्त्र के अनुसार कर कुमावत जाति का इतिहास में गोरव बढ़ाया, यह क्रम सांगा और रतन सिंह के शासनकाल काल तक चलता रहा पर बाहदूरशाह के आक्रमण के साथ ही रूक गया  इसके बाद मुगलो से संधि के बाद चालू हुआ। पर जो काम महाराणा कुंभा के शासनकाल में हुआ तथा तब जो सम्मान वास्तु शिल्पीयो को प्राप्त था।  उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।  वास्तु शिल्पीयो को सम्मान तो 8 वी सदी से मिलता रहा है। पर कुंभा के शासनकाल में शिल्पीयो को सांमतो के समान दर्जा दिया गया I

कोई टिप्पणी नहीं: