
1990 से पूर्व
कुमावत समाज के लगभग 10 हजार बंधु हाथीदांत की मुर्तिया बनाने का काम
करते थे। हाथीदांत पर रोक लगने के बाद ये चंदन की लकड़ी की मुर्तिया बनाने
लगे, आज इस लकड़ी पर भी रोक लगाने के कारण यह कला संकट मै है। अपने हुनर की
विदेशो तक छाप छोडने वाले यह कारीगर अपने परिवार को पालने के लिए मजदूरी
करने को मजबूर है।
टिप्पणियाँ
All paragraph seen , read also nice.... So Thanks .