सोमवार, 28 दिसंबर 2015

गजधर की उपाधि

स्थापत्य निर्माण कला की उपाधि "गजधर" अतार्थ गज को धारण करने वाला, सूत,गुणिया सावल, की वास्तु का ज्ञाता, जो इस स्थापत्य निर्माण कला की शिक्षा का पुर्ण ज्ञान रखता हो, वह गजधर कहलाता है। किसी नगर गांव या महलो के नव निर्माण की योजना बना कर उसके निर्माण की जुमैदार अपने कंधो पर निभाता हो । वह इस सम्मान को पाता है। आज की तरह पुराने जमाने मै ना तो कोई आई आई टी होते थे और ना ही इंजीनिरिग कालेज जहा से पढाई कर नव निर्माण की योजना बना सके या नियोजक कला का ज्ञाता हो, यह संपुर्ण काम कुमावत जाति के शिलपकारो द्वारा किया जाता था। अपनी युगायुगीन शिल्प साधना और स्थापत्य कला की मज) पकड के दम पर,नगर गांव या महलो,गढ किले, के निर्माण के ज्ञाता रहे है।इस जाति के जिस व्यक्ति को गज,सूत,गुणिया,सावल, की नाप पर अच्छी पकड़ होती थी, वह तत्कालीन सासन से गजधर की उपाधि प्राप्त करता था।अभ्यस्त गजधर अपने हुनर से गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार अपने काम को एक हाथ से दूसरे हाथ को काम सिखाकर जोडीदार बनाकर काम को पुरा करने की महारथ हासिल करता था।सफल गजधर वही कहलाता था, जो अपने स्तर के साथियो का निर्माण कर काम को सफलता पुर्ण संपादित कर दे।अपने स्वामी द्वारा दिया गया काम पूरा करने पर गजधर को पारिश्रमिक के अलावा जो सम्मान मिलता था। उसमे सरापा भेट,पगडी बांधना,सोने चांदी का कडा पहनने के सम्मान के साथ जागिर से नवाजा जाता था। गजधर एक सफल वासतुज्ञाता व संपुर्ण निर्माण शैली का ज्ञाता होता है। और गजधर निर्माण कला का सर्वोच्च सम्मान!!!

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