कुमावत समाज की वह अद्भुत निराली हाथीदांत की कारीगरी जो आज हाथीदांत पर
प्रतिबंध लगाने के कारण पूर्णतया समाप्त हो गई है। 1990 से पुर्व अकेले
जयपुर मै लगभग 10000 हजार कारीगर इसका काम करते थे। इस कला के कारण कुमावत
समाज को अंतरराषटीय पहचान मिली थी I हाथीदांत पर इतनी बारीकी से काम होता
था जिसे देखकर हर कोई दांतो तले उंगली दबा लेते थे
इस कला के दम पर बाबू
लाल जी सिरोहिया को अन्तर्राष्ट्रीय व कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले इसी तरह जोहरी
लाल जी बडीवाल, सेतू राम जी नानू राम जी छापोला,बलराम जी किरोडीवाल,
भँवर लाल जी सिरोहिया,चौगान जी सिरोहिया, हनुमान जी सिरोहिया,गिरधारी लाल
जी सिरोहिया, नाथू लाल जी जालांधरा, नानू राम जी जालांधरा, लाल चंद जी
कुदीवाल, भँवर लाल जी कुदीवाल, सुरज जी नारायण लाल जी देवतवाल, आदि नामी
कलाकारो ने हाथीदात की कला का लोहा मनवाया है।
झोटवाड़ा मै शिल्प कालोनी
नाम हाथीदांत की कला के कारीगरो के कारण ही जाना जाती है। आज यह कला
पूर्णतया लोप हो गई पर इन कलाकारो की कलाकृतियो संपूर्ण विश्व मै धरोहरो के
रूप मै विद्यमान है। कभी इस कला को पर कुमावत समाज के लोगो कालरा एकाधिकार
रहा है।
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