शनिवार, 25 जून 2016

चितौड़गढ़ : निर्माण के इतिहास में कुमावत शिल्पीयो का योगदान

महान वास्तुकार मंडन के दुसरे पुत्र ईश्वर का उल्लेख जावरा की वि स 1554 की प्रशस्ति मै है। उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित अप्रकाशित खरतरगच्छ के एक लेख में ईश्वर के पुत्र छीतर का उल्लेख है यही उल्लेखित खेता खनारिया के दो पुत्र मंडन व नाथा मंडन के दो पुत्र गोविन्द व ईश्वर ईश्वर के पुत्र छीतर इसी तरह कुम्भा के समकालीन एक उल्लेखनीय परिवार का वर्णन है। वास्तु शास्त्र व भवन निर्माण के शिल्पकार लाखा के पुत्र जैता मंडावरा व उसका भाई नारद  जिसका उल्लेख वि स 1495 की चित्तोड की महवीर प्रसाद प्रशस्ति मै हो रहा है। इस परिवार के कई लेख मिले है, जिनमें इस परिवार के द्वारा किये गये निर्माण कार्यों का भी उल्लेख है। पर  वि स 1515 का लेख महत्वपूर्ण है। इसमे लाखा मंडावरा को "सकलवास्तुशास्तरविशारद" कहा गया है। जो इसकी महानता को दर्शाता है।  विभिन्न लेखों में जैता के पुत्रों का वर्णन है। जैता के पुत्रों के नाम नापा, पामा,पूंजा,भूमि,चुथी, व बलराज,थे  इनके अलावा भी चित्तोड मे कई शिल्पकार हुए हैं। वि स 1538 मै एक अप्रकाशित मूर्ति के लेख में शिल्पकार शिहा द्वारा शांतिनाथ की मूर्ति बनाने का उल्लेख है आ शत्रुंञ्जय के वि स 1587 के लेख में कई शिल्पकारो का यहा जीर्णोद्धार करने का उल्लेख मिलता है। 18 वी सदी में भी कई शिल्पकारो का वर्णन है। नीलकंठ मंदिर के स्तम्भ पर वि स 1787 का लेख है। इसमे सलावट बापा के पुत्र बीरभाणा मंडावरा का वर्णन है। वि स 1832,1833,1839 के लेखों में कई गजघर शिल्पकारो के नाम उल्लेखित है, जिनके नाम के आगे सलावट लिखा है! इस तरह से  चित्तोड के इतिहास में चित्तोड गढ के निर्माण मै कुमावत जाति के वास्तु शास्त्रीयो व शिल्पकारो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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