गुरुवार, 16 जून 2016

दयालबाग राधास्वामी सत्संग,आगरा


दयालबाग आगरा 
प्रमुख शिल्पी नारायण जी, आनंदी लाल करोडीवाल,  कन्हैयालाल जी सिरोहिया एवं भौरी लाल जी खोवाल


दयालबाग की स्थापना राधास्वामी सत्संग के पांचवे संत सत्गुरु परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज (सर आनन्द स्वरुप साहब) ने बसन्त पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को की थी।





स्वामीबाग़ समाधि हुजूर स्वामी जी महाराज (श्री शिव दयाल सिंह सेठ) का स्मारक/ समाधि है। यह आगरा के बाहरी क्षेत्र में है, जिसे स्वामी बाग कहते हैं। सन् 1908 ईस्वी में इसका निर्माण आरम्भ हुआ था , तब से आज तक कुमावत समाज के शिल्पकारो ने लगातार 100 वर्षों से भी अधिक समय तक इसके निर्माण मै जुटे हैं। इन शिल्पीयो मै प्रमुख नारायण जी आनंदी लाल करोडीवाल,  कन्हैयालाल जी सिरोहिया एवं भौरी लाल जी खोवाल रहे हैं। जिन्होंने हिन्दू वास्तुकला के अनुसार इसकी संकल्पना बनाकर निर्माण प्रारंभ किया,इन परिवारों के साथ ही अन्य समाज बंधुओं की पाचवी पीढ़ी आज यही निर्माण कार्य मै लगी है।






सफेद संगमरमर पर खिलता कमल, बेल पर लटके अंगूर और अशोक की लहराती पत्तियां। आंखें इस कला को देखें तो दिमाग से जुबान के लिए यह संदेश आता है कि वह पूछे कि आखिर किन हाथों ने इन्हें छुआ है। क्या इसके आगे वास्तुकला में स्थापत्य कला का कोई ताज है। 

समाधि की योजना एवं परिकल्पना मूल रूप से भारतीय है, किंतु वास्तुशिल्प भारत के परंपरागत शिल्प से भिन्न है। निर्माण किसी विशेष शैली के स्थान पर मिलीजुली कला का ऐसा नमूना है, जो सहजता से किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम है। दीवारों, खम्भों के सिरों और मेहराबों पर फूल पत्तियां इस प्रकार से गढ़ी गई हैं कि प्रथम दृष्टया तो असली ही जान पड़ती हैं। कमल, केला, पपीता, अशोक, अंगूर की बेल तथा अन्य फूल-पत्तियों को पत्थर पर तराशने का जो काम यहां देखने को मिलता है, वह प्रकृति के अनुकूल है और शिल्प कला का अनूठा एवं श्रेष्ठ उदहारण है। 






इमारत की आधार शिला 52 कुओं पर रखी है, जिन्हें 40 से 45 फुट की गहराई तथा साढ़े पांच से दस फुट तक के व्यास में खोदकर ईटों, गिट्टी तथा चूने से भर दिया है। मुख्य भवन 110 फुट लम्बा और 55 फुट चौड़े वर्गाकार का चबूतरा है। 

प्रथम तल पर मुख्य हाल 68 फुट का वर्गाकार है। इसके चारों ओर 15 फुट का बरामदा है। आगे चलकर इसी हाल में स्वामी जी महाराज की महापवित्र रज जो इस समय तहखाने में स्थित है, प्रतिष्ठित किये जाने की योजना है। इमारत में प्रयुक्त श्वेत तथा गुलाबी पत्थर मकराना की खानों से आया है। हरा पत्थर बड़ोदरा व पीला जैसलमेर की खानों का है। बहुरंगी झलक वाले पत्थर नौशेरा की खानों से मंगवाये हुए हैं।  

समाधि स्थल पर नक्काशी कृत गुंबद व मुख्य द्वार की नक्काशी देखते ही बनती है। वर्तमान समय में कुमावत जाति की स्थापत्य शिल्प साधना का यह अनोखा संग्रह है, जिस तरह की कुमावत शिल्पकारो ने यहाँ नक्काशी का काम किया है। उसकी जितनी तारीफ की जाये वह कम है। यह  जब भी पुर्ण होगा, ताजमहल से कई गुणा सुंदर होगा ।




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