आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है।
जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर चक्रवर्ती का नाम सम्मान से लिया जाता है।किन्तु वास्तविक वास्तुकार थे उस्ता लालचंद इतिहास तो तोड़ मरोड़ कर पेश कर विद्याधर चक्रवर्ती का नाम जोड़ दिया गया जयपुर आयोजन के कपडे पर बने पुराने नक़्शे आज भी सुरक्षित है जिस पर उस्ता लाल चंद के हस्ताक्षर है।विद्याधर चक्रवर्ती तो आमेर दरबार की 'कचहरी-मुस्तफी' में महज़ एक नायब-दरोगा (लेखा-लिपिक) थे,किन्तु इतिहासकारो ने लेखा- लिपिक को वास्तुविद्य बना दिया।
जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नही मिलेगा।
जयपुर स्थापत्य
नियोजित तरीके से बसाये गये इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे, ही नही बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाये गये। गलियों का और सडकों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया,नगर को सुरक्षित रखने के लिये, इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया| पश्चिमी पहाडी पर नाहरगढ का किला बनवाया गया। पुराने दुर्ग जयगढ मे हथियार बनाने का कारखाना बनवाया गया, जिसे देख कर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं ।
महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों मे बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमे सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल,रनिवास,जंतर मंतर,गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं, शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये। वास्तुकार ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने आदि के साथ वर्षाजल का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवाया।
बाजार- जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पल भर में इसका सौन्दर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है। लम्बी चौडी और ऊंची प्राचीर तीन ओर फ़ैली पर्वतमाला सीधे सपाट राजमार्ग गलियां चौराहे चौपड भव्य राजप्रसाद.मंदिर और हवेली, बाग बगीचे,जलाशय और गुलाबी आभा से सजा यह शहर इन्द्रपुरी का आभास देने लगता है,जलाशय तो अब नहीं रहे, किन्तु कल्पना की जा सकती है, कि अब से कुछ दशक पहले ही जयपुर परकोटे में ही सिमटा हुआ था, तब इसका भव्य एवं कलात्मक रूप हर किसी को मन्त्र मुग्ध कर देता होगा. आज भी जयपुर यहां आने वाले सैलानियों को बरसों बरस सहेज कर रखने वाले रोमांचकारी अनुभव देता है।
जयपुर में स्थापत्य एवं शिल्प की अनूठी परम्परा की प्रमुख इमारते एवं स्थल
हवा महल
ईसवी सन् 1799 में निर्मित हवा महल राजपूत स्थापत्य का मुख्य प्रमाण चिन्ह। पुरानी नगरी की मुख्य गलियों के साथ यह पाँच मंजिली इमारत गुलाबी रंग में अर्धअष्टभुजाकार और परिष्कृत छतेदार बलुए पत्थर की खिड़कियों से सुसज्जित है। वास्तुकार एवं शिल्पी उस्ता लालचंद
सरगासूली- (ईसर लाट)
अठारहवीं सदी में 1749 में सात खण्डों की इस भव्य जयपुर शहर की सबसे ऊंची मीनार मीनार 'ईसरलाट' उर्फ़ 'सरगासूली' का निर्माण महाराजा ईश्वरी सिंह ने जयपुर के गृहयुद्धों में विरोधी सात दुश्मनों पर अपनी तीन विजयों के बाद करवाया था। वास्तुकार एवं शिल्पी गणेश खोवाल
अल्बर्ट हॉल संग्रहालय
यह राजस्थान का सबसे पुराना संग्रहालय है । यह संग्रहालय "राम निवास उद्यान" के बाहरी ओर सीटी वॉल के नये द्वार के सामने है ।यह "भारत-अरबी शैली" में बनाई गयी एक बिल्डिंग है । इसकी डिजाइन सर सैम्युल स्विंटन जैकब ने की थी। जिसका निर्माण उस्ता रामविलास मनेठिया, जागीरदार उस्ता लक्ष्मी नारायण मनेठिया एवं जागीरदार उस्ता रामबक्श मुस्सर के सानिध्य में सम्पन हुआ
आमेर, जयगढ़ एवं नाहरगढ़ के किले
वास्तु स्थापत्य, शिल्प एवं ज्योतिर्विज्ञान का विश्व-विख्यात नगर जयपुर अपने विकासशील स्वरूप एवं ऐतिहासिक आमेर, जयगढ़ एवं नाहरगढ़ के किलो के कारण भारत के पुरातत्वीय एवं पर्यटक केंद्र के रूप में सर्व विख्यात है।
जयपुर चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य, आराइस एवं विविध शिल्प कलाओं ल सदियों से एक महानतम केंद्र रहा है। इस केंद्र की कला को समृद्ध करने में अनेक ज्ञाताज्ञाता कुमावत शिल्पियों कलाकारों का अनुभवसिद्ध एवं प्रयोगशील योगदान रहा है।
आमेर के किले में जो विशाल प्राकार, द्वार, प्रांगण, दरबार-कक्ष, सभागार, अंतःपुर झरोखे, मंदिर आदि बने है, उनके निर्माण सज्जा आराइस एवं चित्रांकन में कुमावत शिल्पियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दुर्भाग्य से उनके नाम जानने के साधन नहीं है, फिर भी जो नाम सामने आये है उनका उल्लेख निम्ननासूर है।
महाराजा कुमावत शिल्पकार
सवाई जय सिंह जी अनतराम कैकटिया
रामसिंह जी जागीरदार उस्ता रामविलास मनेठिया
जागीरदार उस्ता लक्ष्मी नारायण मनेठिया
जागीरदार उस्ता रामबक्श मुस्सर
ईश्वरसिंह जी गणेश खोवाल
माधोसिंह जी उस्ता खूबराम कुसुम्बीवाल
मानसिंह जी जगधर उस्ता गोपीचंद
पद्मश्री रामप्रकाश गहलोत
दुर्गालाल नन्दीवाल
मानसिंह जी जगधर उस्ता गोपीचंद
पद्मश्री रामप्रकाश गहलोत
दुर्गालाल नन्दीवाल
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