शनिवार, 25 जून 2016

चितौड़गढ़ : निर्माण के इतिहास में कुमावत शिल्पीयो का योगदान २

चित्तोड के इतिहास में कई स्थापत्य कला के उल्लेखनीय शिल्पीयो हुए हैं। जिनकी भल्लभ सूर्य से सम्बन्धित शक स० 1028 के शिलालेख में "राम देव: सुधी: सुव्यक्ता जसदेव सूनुरूदकारीत्सूत्तधाराग्रणी" शब्द अंकित है। इसी प्रकार वि स 1207की कुमारपाल की प्रशस्ति मै सूत्रधार(शिल्पकार) का नाम स्पष्ट नही है। समिध्देश्वर के मंदिर के स्तम्भ पर वि स 1286  के दो लेख खुदे है। जिनपर शिल्पकारो के नाम खुदे है। रावल समरसिंह की चित्तोड की प्रशस्ति मै "सज्जनेन समुत्कीर्णा प्रशस्ति: शिल्पानामुना" शब्द है जो शिल्पकारो की प्रशस्ति मै लिखा गया है। पर शिल्पकारो की कुछ विशिष्ट परिवारों का उल्लेख 15वी शताब्दी में चित्तोड के इतिहास में दर्ज है। चित्तोड के स्थापत्य सूत्रधार वीजल के पुत्र माना और माना के  पुत्र वीस व वीसल का उल्लेख मिलता है। इतिहासकार रतन चंद्र ने अपने लेख मैवाड के कुशल शिल्पी मै इनका विस्तार से वर्णन लिखा है! माना के लिए कई सुन्दर प्रशाद निर्माण के लिए लिखा है! इस परिवार के लिए " गुणवान "  लेख में भी उल्लेख है। जिसमे लिखा है! मनाख्यो सकल गुणगाण बीजल सुख: शिल्पी जातो गुणगाण,युतो बीवसल ईति_ दुसरा महत्वपूर्ण उल्लेख महान वास्तुकार मंडन खनारिया के परिवार का है, मंडन के पिता खेता का भी उल्लेख है। जिसको कई इतिहासकारो ने गुजरात से बुलाया गया बताते हैं। पर इसका खंडन स्वयं मंडन ने अपने लिखे ग्रन्थो मै "श्री मद्देशे मेदपाटाभिगाने  छैत्राृ्योशभूत् सूत्रधारो वरिष्ठ: वर्णन किया है। जिससे खेता को मैवाड वासी कहलाने मै गर्व प्रकट किया है।  राजवल्लभ मंडन मै मंडन ने मैवाड मै किये गया निर्माण कार्य की व महाराणा कुंभा का वर्णन बड़े ही गर्व के साथ किया है। मंडन खनारिया उस समय का महान वास्तुकार रहा है। जिसने वास्तुकला पर कई ग्रन्थो की रचना की है। मंडन के छोटे भाई नाथा ने भी कई  सुंदर प्रशाद बनाये है उसने वास्तुमंजरी नामक ग्रंथ लिखा है! मंडन का पुत्र गोविन्द भी वास्तु शास्त्र व भवन निर्माण का बडा शिल्पकार हुआ है। जिसने वास्तु शास्त्र पर तीन ग्रन्थो की रचना की है। यथा_कलानिधि उध्दार घोरणि और द्वार दीपिका मुख्य हैं। यह महाराणा रायमल के समय में राज शिल्पी था  I 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Jai kumawat