शनिवार, 18 जून 2016

राजस्थान का स्थापत्य -मन्दिर शिल्प



मन्दिर शिल्प का वास्तुविद मंडन शिल्पी 




मन्दिर शिल्प की दृष्टि से राजस्थान अत्यन्त समृद्ध है तथा उत्तर भारत के मंदिर स्थापत्य के इतिहास में उसका विशिष्ट महत्त्व है। मंडन महाराणा कुंभा (1433-1468 ई.) का प्रधान सूत्रधार (वास्तुविद) तथा मूर्तिशास्त्री था। मंडन शिल्पी ने रूपमंडन और देवतामूर्ति प्रकरण ग्रन्थ की रचना कर इतिहास में सर्वप्रथम मूर्तिविधान की विवेचना प्रस्तुत की है। मंडन सूत्रधार केवल शास्त्रज्ञ ही न था, अपितु उसे वास्तुशास्त्र का प्रयोगात्मक अनुभव भी था।

राजथान में सातवीं शताब्दी से पूर्व जो मन्दिर बनेदुर्भाग्य से उनके अवशेष ही प्राप्त होते हैं। यहाँ मन्दिरों के विकास का काल सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य रहा। यह वह काल थाजब राजस्थान में अनेक मन्दिर बने। इस काल में ही मन्दिरों की क्षेत्रीय शैलियाँ विकसित हुई। इस काल में विशाल एवं परिपूर्ण मन्दिरों का निर्माण हुआ। लगभग आठवीं शताब्दी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआगुर्जर-प्रतिहार अथवा महामारू कहा गया है। इस शैली के अन्तर्गत प्रारम्भिक निर्माण मण्डौर के प्रतिहारोंसांभर के चौहानों तथा चित्तौड़ के मौर्यों ने किया। इस प्रकार के मन्दिरों में केकीन्द (मेड़ता) का नीलकण्ठेश्वर मन्दिरकिराडू का सोमेश्वर मन्दिर प्रमुख है।


ग्यारहवीं से तेरहवीं सदी के बीच निर्मित होने वाले राजस्थान के मन्दिरों को श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि यह मन्दिर - शिल्प के उत्कर्ष का काल था। इस युग में राजस्थान में काफी संख्या में बड़े और अलंकृत मन्दिर बने, जिन्हें सोलंकी या मारु गुर्जर शैली के अन्तर्गत रख जा सकता है। इस शैली के मन्दिरों में ओसियाँ का सच्चिया माता मन्दिर, चित्तौड़ दुर्ग में स्थित समिंधेश्वर मन्दिर आदि प्रमुख हैं। इस शैली के द्वार सजावटी है। खंभे अलंकृत, पतले, लम्बे और गोलाई लिये हुये है, गर्भगृह के रथ आगे बढ़े हुये है। ये मन्दिर ऊँची पीठिका पर बने हुये हैं।


राजस्थान में जैन मतावम्बियों ने अनेक जैन मन्दिर बनवाये, जो वास्तुकला की दृष्टि से अभूतपूर्व हैं। इन मंदिरों में विशिष्ट तल विन्यास संयोजन और स्वरूप का विकास हुआ जो इस धर्म की पूजा-पद्धति और मान्यताओं के अनुरूप था। जैन मन्दिरों में सर्वाधिक प्रसिद्ध देलवाड़ा के मन्दिर है। इनके अतिरिक्त रणकपुर, ओसियाँ, जैसलमेर आदि स्थानों के जैन मन्दिर प्रसिद्ध है। साथ ही, पाली जिले में सेवाड़ी, घाणेराव, नाडौल-नारलाई, सिरोही जिले में वर्माण, झालावाड़ जिले में चाँदखेड़ी और झालरापाटन, बूँदी में केशोरायपाटन, करौली में श्रीमहावीर जी आदि स्थानों के जैन मन्दिर प्रमुख हैं।

किराडू के मन्दिरबाड़मेर  :-यादव वंश की कुलदेवी कैलादेवी का मन्दिर करौली से 26 किमी दूर अवस्थित है। यहाँ का मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ हैजिसमें कैलादेवी (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।

गणेश मन्दिररणथम्भौर :-सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथम्भौर के किले में देशभर में विख्यात त्रिनेत्र मन्दिर बना हुआ है। सिन्दूर लेपन की मात्रा अधिक होने के कारण मूर्ति का वास्तविक स्वरूप जानना कठिन है

गोविन्ददेव जी मन्दिर जयपुर :-जयपुर का गोविन्ददेवजी मन्दिर गौड़ीय सम्प्रदाय का प्रमुख मन्दिर है। वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी इनके बालरूप की पूजा करते हैंतो गौड़ीय सम्प्रदाय वाले युगल रूप अर्थात् राधाकृष्ण के रूप में पूजते हैं। 

जगतशिरोमणि मन्दिरआमेर  :-आमेर में स्थित इस मंदिर का निर्माण कछवाहा शासक मानसिंह की पत्नी कंकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में करवाया था। कहा जाता है इस मंदिर में प्रतिष्ठित काले पत्थर की  कृष्ण की मूर्ति वही मूर्ति हैजिसकी मीरा चित्तौड़ में आराधना किया करती थी।यह मंदिर अपने उत्कृष्ट शिल्प एवं सौन्दर्य के कारण आमेर का सबसे अधिक विख्यात मंदिर है।

जगदीश मंदिरउदयपुर :-उदयपुर में स्थित जगदीश मन्दिर शिल्पकला की दृष्टि से अनूठा है। इसका निर्माण 1651 में महाराणा जगतसिंह ने करवाया था।इस मन्दिर के बाहरी भाग में चारों ओर अत्यन्त सुन्दर शिल्प बना हुआ है। कर्नल टॉडगौरीशंकर हीराचन्द ओझाकविराज श्यामलदास आदि ने इस मन्दिर के शिल्प की उत्कृष्टता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।

जैन मन्दिर देलवाड़ा :-सफेद संगमरमर से निर्मित भारतीय शिल्पकला की उत्कृष्टता तथा जैन संस्कृति के वैभव और उदारता को प्रकट करने वाले देलवाड़ा के जैन मन्दिर सिरोही जिले में आबू पर्वत पर स्थित है।यहाँ के मन्दिरों के मंडपोंस्तम्भोंछतरियों तथा वेदियों के निर्माण में श्वेत पत्थर पर इतनी बारीक एवं भव्य खुदाई की गई हैजो अन्यत्र दुर्लभ है। वस्तुतः यह मन्दिर सम्पूर्ण भारत में कलात्मकता में बेजोड़ है

ब्रह्मा मन्दिर पुष्कर
जैन मन्दिर रणकपुर
शिलादेवी मन्दिर आमेर
श्रीनाथजी मन्दिर नाथद्वारा
सच्चिया माता र्मिन्दर ओसियां
सास-बहू मन्दिर नागदा

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